मैं जैसा हूँ
मैं वैसा हूँ
मैं न जानू
मैं कैसा हूँ?
कोई कहता मुझे साधू
कोई कहता मैं हूँ स्वादू
किसी को क्या पता मैं क्या हूँ?
मैं न साधु और न स्वादू
कोई समझे मैं पुण्यात्मा
कोई समझे मैं श्रापित हूँ
किसी को क्या पता वो क्या है?
किसी को क्या पता मैं क्या हूँ?
मैं दोनों का जोड़ बाकी हूँ
मैं तो बस शुन्य साक्षी हूँ
न तो मैं माँस भक्षी हूँ
न ही मैं शाकाहारी हूँ
मैं दिखता हूँ तो ज़िन्दा हूँ
न ज़िन्दा हूँ तो शव कहते
इस होने न होने को ही
शायद जीना मरना कहते
न मैं जो दिखता वो मैं हूँ
न ये नज़रे मुझे पहचानें
किन रूपों में विचरता हूँ
न मैं जानू, न वो जानें
मैं जैसा हूँ
मैं वैसा हूँ
मैं न जानू
मैं कैसा हूँ?
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