पकड़ के रखने को
कभी यूँही थोड़ा चखने को
वक़्त है किसके पास?
अपनी अपनी चाल
अपनी अपनी प्राथमिकता
दौड़ मे थोड़ा ठहेरने को
फिर यूँही पीछे मुड़ने को
तत्व है किसके पास?
बहती सरगम मे हम
उछल कूद करते हैं
जीते हैं मरते हैं
और साथ साथ चलते हैं
कभी यूँही थोड़ा छिटकने को
गिरने को फिर संभलने को
महत्व है किसके पास?
थाम लो हाथ
की जरा सुकून आ जाएगा
सूख़्ती रागों मे
बहता हुवा खून आ जाएगा
नही तो बिखरी उम्मीद
सिमट चुके सपनो
उजड़ चुकी दीवारों को
सब छोड़ के
जहाँ बटोर के
टूटे हुवे बेचारों को
देने के लिए
जवाब होगा किसके पास?
जगमगाता वीरान देख सके
फिर ऐसा ख्वाब होगा किसके पास?
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem