लड़ाइयों से आगे! Poem by Aditya Upadhyaya

लड़ाइयों से आगे!

पकड़ के रखने को
कभी यूँही थोड़ा चखने को
वक़्त है किसके पास?
अपनी अपनी चाल
अपनी अपनी प्राथमिकता
दौड़ मे थोड़ा ठहेरने को
फिर यूँही पीछे मुड़ने को
तत्व है किसके पास?
बहती सरगम मे हम
उछल कूद करते हैं
जीते हैं मरते हैं
और साथ साथ चलते हैं
कभी यूँही थोड़ा छिटकने को
गिरने को फिर संभलने को
महत्‍व है किसके पास?
थाम लो हाथ
की जरा सुकून आ जाएगा
सूख़्ती रागों मे
बहता हुवा खून आ जाएगा
नही तो बिखरी उम्मीद
सिमट चुके सपनो
उजड़ चुकी दीवारों को
सब छोड़ के
जहाँ बटोर के
टूटे हुवे बेचारों को
देने के लिए
जवाब होगा किसके पास?
जगमगाता वीरान देख सके
फिर ऐसा ख्वाब होगा किसके पास?

Thursday, December 22, 2016
Topic(s) of this poem: war and peace
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
I was very much bothered because of all the news coming from all the part of world about war, people becoming refugee.Worst thing is condition of children.
This poem is my step for them and I am positive for doing more physically in future. I hope you all will like it.
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