छूने की चाह Poem by Ajay Srivastava

छूने की चाह

दिल को छूने की चाह।
दर्द की परत से होकर जाती है।
जहा परत को हटने को तयार नहीं होती।
वहाँ पर अहसास पर भी परत पड़ जाती है।

हर परत दूसरी परत से हाथ मिला लेती है।
हर सुखद अहसास को दूर करती जाती है।
हर दर्द अपना लगने लगता है।
हर सुख पराया सा लगने लगता है।

ऐसे में दिल हर रौशनी अँधेरी रात लगती है।
हर अँधेरी रात में रौशनी की किरण दिखने लगती है।

छूने की चाह
Saturday, February 25, 2017
Topic(s) of this poem: feelings
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