ख़ास है हर शख्स अपने आप में Poem by Ahatisham Alam

ख़ास है हर शख्स अपने आप में

ख़ास है हर शख्स अपने आप में
पर शान है सबसे ज़्यादा महफ़िल में उनकी
हैं रिश्तों के धागों से जज़्बात बांधे
इस क़दर है मोहब्बत मेरे दिल में उनकी

उनके दर की तो बात ही अजीब है
जहां कभी भी ना शब होती है
रौनक़ सी छायी रहती है उस वक़्त
हाज़िरी जांनिसारों की जब होती है।

Sunday, July 2, 2017
Topic(s) of this poem: love and friendship
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