लौकी की रातों-रात बढ़त का राज़ है खतरनाक रसायनों का इंजेक्शन,
लाल-लाल मीठे तरबूजों का राज़ है लाल रंग और मिठास का इंजेक्शन,
मिलावटी है स्वादिष्ट मिठाइयों का मावा,
पर सब करते शुद्धता का दावा,
कार्बाइड से पकते आम और पपीते,
दूध की जगह यूरिया का घोल हम पीते,
चर्बी से बनता घी
और शाक-सब्जियों के साथ कीटनाशक है फ्री |
हवा ऐसी कि सांस लेना भी है दूभर,
धरती के जल में कहीं आर्सेनिक तो कहीं मरकरी का ज़हर,
पवित्र गंगा को भी कर दिया गंदा,
सोंच ऐसी कि बस चमकता रहे अपना धंधा,
इंसान के लालच ने सब कुछ कर दिया प्रदूषित,
करें क्या जब मन ही हो गये कलुशित,
सिमटते जंगल और सिकुड़ती नदियां,
पहाड़ों को भी काटकर कर दिया बौना |
अब भी समय है संभल जाओ,
प्रकृति के धैर्य को और न आजमाओ,
अपनी आंखों से जरा लालच का चश्मा उतारकर देखो,
इसी दूषित हवा में तुम भी जी रहे हो,
यही खा रहे हो, यही पी रहे हो,
ऐसे क्या किसी का दुख बांटोगे तुम,
बोवोगे जो वही काटोगे तुम |
कहीं बादल फटने से तबाही, तो कहीं भयंकर बर्फबारी,
कहीं भूकंप से धरती का कंपन, तो कहीं ज्वालामुखी का गर्जन,
कहीं बाढ़ की विनाशलीला, तो कहीं तूफानों का कहर |
समझो जरा प्रकृति के ये संकेत,
वर्ना सबकुछ चढ़ जाएगा प्रलय की भेंट,
सबकुछ चढ़ जाएगा प्रलय की भेंट |
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