(ये कविता उस समय लिखी गयी थी जब मोबाइल फोन को भारत में launch हुए लगभग एक साल बीता था | याद कीजिए उन पुराने दिनों को और इस कविता का स्वाद लीजिए |)
जब मैने बैंक का नया account खुलवाया
तो form में address के साथ mobile नंबर का जिक्र आया,
मैने Column को blank छोड़ा
तो बैंक कर्मचारी ने अपनी तिरछी निगाहों को
मेरे चेहरे की ओर मोड़ा,
सवाल दागा कि मोबाइल नंबर कयों नहीं लिखते?
मैंने गुनाहगार की तरह उसकी ओर देखा,
मोबाइल नहीं मेरे पास, ये उत्तर फेंका |
घर, ऑफिस और बाज़ार, हर जगह लैंडलाइन फोन मौज़ूद हैं,
फिर ऐसे में cellphone का क्या वज़ूद है?
बैंक कर्मचारी का मुंह अविश्वास से खुला रह गया,
उसका expression देखकर मैं तो डर गया |
मोबाइल न होना कितना बड़ा अपराध है
ये मैंने जाना न था,
आज के युग सत्य को मैंने पहचाना न था |
शर्म के एहसास तले दबा मैं घर वापस आया,
श्रीमती जी को सारा किस्सा सुनाया |
सोंचा था झड़ेंगे उनके मुख से सहानुभूति के फूल,
पर हाय ये थी हमारी कितनी बड़ी भूल!
श्रीमती जी ने फरमाया:
मैं तो कबसे कह रही हूं – latest mobile ले लो,
पर तुम न जाने कौन से ज़माने में जी रहे हो,
अपनी नहीं तो कम-से-कम मेरी इज्ज़त का खयाल करो,
Ladies club में जब सबके mobile बजते हैं तो,
तुम्हें क्या मालूम मेरे दिल पर कैसे नश्तर चलते हैं |
तभी पड़ोसी हमारे घर आ धमके,
बोले – एक जरुरी फोन करना है |
मैंने आश्चर्य से पूछा – आपके पास तो mobile है?
जवाब मिला – है तो पर उसमें refill डलवाना है,
फिलहाल तो आपके landline से ही काम चलाना है |
उनके जाने के बाद श्रीमती जी ने फोन घुमाया,
दो किलो आलू और तीन किलो प्याज का order,
सब्जीवाले के mobile पर जमाया |
मुझे एहसास हुआ कि मैं तो सब्जीवाले से भी गया-बीता हूं,
न जाने कौन से ज़माने में जीता हूं |
अगले दिन सुबह office के लिये निकलने वाला था कि
श्रीमती जी ने फरमान सुनाया – अपने दोनो ATM card देते जाना |
मैंने पूछा दोनो क्यों?
जवाब मिला – एक से तो सिर्फ बीस हजार मिलते हैं,
और हमें चाहिये चालीस immediate |
बेटे को चाहिये नया camera mobile और
मुझे नक्षत्र diamonds ear-rings set |
वो Mrs. मोहन बहुत इतराती है,
हमेशा अपनी jewelry के गीत गाती है |
मैंने कहा पिछले महीने ही तो फुंके हैं,
बेटे की नयी bike पर पचास हज़ार |
अब अभी नया mobile ऐसा क्या जरूरी है?
बेटा बोला – इसके बिना तो ज़िंदगी अधूरी है |
Bike हो तो तफरीह का mood कभी भी बन जाता है,
पर mobile न हो तो दोस्तों से कैसे करूं सम्पर्क?
मैंने सोंचा हो गया अपना तो बेड़ा गर्क |
श्रीमती जी फिर बोलीं – Mrs. शर्मा के तो Honda City के लटके-झटके हैं,
पर हम अभी तक Maruti 800 पर ही अटके हैं |
मैंने कहा – dear Honda City या Ford Fiesta,
हमारी lifestyle से मेल नहीं खाता है,
उसमें तो हम जैसा आदमी driver नजर आता है |
श्रीमती जी बिफर गयीं, बोलीं: इन बातों से हमें भरमाओ मत,
हर घड़ी सादगी भरे जीवन के गीत गाओ मत |
ज़माना उसी को करता सलाम जिसके पास हो गाड़ी और बंगला,
जिसके पास ये नहीं वो तो है कंगला |
और सुनो: एक TV से काम नहीं चलता, दूसरा भी लेना है,
Plasma TV के साथ home-theatre भी हो तो क्या कहना है!
मैंने कहा: हम सोने की खान में नहीं रहते हैं,
जवाब मिला: क्यों झूठ कहते हो?
तुमने ही तो बताया था कि कच्चे तेल को काला सोना कहते हैं |
और अब तो अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में तेल की कीमत भी है उंची,
फिर हम क्यों रखें society में अपनी नाक नीची?
मैंने समझाया: भ्रष्टाचार के दलदल में हमें नहीं फंसना है,
अपनी salary में ही गुजर-बसर करना है |
जवाब आया: Offshore की सीढ़ियां तो खूब चढ़ते हो,
फिर भ्रष्टाचार की सीढिंयों से इतना क्यों डरते हो?
मैने आंखें बंद करके भगवान से connection जोड़ा,
और उनके सामने दो option छोड़ा |
या तो बीबी-बच्चों को सदबुद्धी देकर धरती पर ला दे,
या फिर हमें कम-से-कम KBC की hot seat तक पहुंचा दे |
आज की दुनिया में हम ढुंढ रहे status और दौलत में मन की शांति,
मानव मन की ये है कितनी बड़ी भ्रांति |
असली सुख और संतोष तो है मन के अंदर,
जिसने जीवन का ये सच जाना वही है सच्चा सिकंदर |
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मोबाइल फोन के बहाने आपने बहुत रोचक अंदाज़ में मध्यम वर्ग की मानसिकता का खुलासा किया है. आपकी व्यंग्यात्मक कविता हिंदी साहित्य का मान बढ़ाने वाली रचना है. धन्यवाद, राकेश जी. आपकी कुछ पंक्तियाँ उद्धृत कर रहा हूँ: हम ढुंढ रहे status और दौलत में मन की शांति / मानव मन की ये है कितनी बड़ी भ्रांति / असली सुख और संतोष तो है मन के अंदर,