जुदा... Poem by Kamal Meena

जुदा...

रोक ना पाया दिल को
इक पल नज़रें जो तुमसे मिला बैठा
बस उस पल में ही
मैं तुम्हे जिंदगी बना बैठा
इजाज़त ना मेरी हुई
ना इजाज़त तुम्हारी
ये तो बस एक कयामत थी
जो मुझ पर बरसी
तेरी खुमारी
मौका मिला तो
हाले ए दिल भी बयाँ कर गया
खता उसकी ना थी
लगता मेरे इश्क़ की थी
बिन बोले कुछ
वो अपनी हसीन आँखों को
मुझसे जुदा कर गया...

Tuesday, September 17, 2013
Topic(s) of this poem: love hurts
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