रक्षाबंधन Poem by veena dubey

रक्षाबंधन

मुंबई की यह बात थी, कैसी काली रात थी.
जगह जगह पर शोर शराबा, जगह जगह बरसात थी.
चहुँ ओर था पानी पानी, सबकी अपनी अलग कहानी,
कुछ के छुट गए घर बार, कुछ की ख़तम हुई जिंदगानी.

माँ से छीन गया बेटा प्यारा, बहन से छीन गया भाई दुलारा,
कैसा था नियति का खेल, अपनों की लाशों से भी हुआ न मेल.

आज राखी का दिन है आया, सबके मन उल्लास समाया,
कोई उस बहना की पूछे, जिसका भाई लौट न पाया.
थमी थमी आँखों से घर का कोना कोना तकती है.
भाई की स्मृतियाँ घर के हर कोने में बसती है.

यहीं दुआ वह करती हरदम, सदा अटूट यह बंधन हो.
किसी बहन के जीवन में न ऐसा रक्षाबंधन हो.

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