इस सन्नाटे में भी एक आहट सी आती है... Poem by Vashita Moondra

इस सन्नाटे में भी एक आहट सी आती है...

इस सन्नाटे में भी एक आहट सी आती है,

ये ख़ामोशी भी हमसे कुछ कह गुज़र जाती है|



न जाने दिल में क्यूँ एक हूक़ सी उठ जाती है,

जब एक आवाज़ रात की निस्तब्धता को चीर जाती है|

ख्यालों की उड़ान में विचरण करता तेरा मन,

सहसा, सपने होते चूर, धरती पर जा गिरता है|



धरशील ह्रदय को अपने संभाल तू मानव,

न करने दे आशा उसकी, जो हो न सके हासिल|

रात की निस्तब्धता को पहचान तू मानव,

कान खड़े कर तू सुन रजनी की वाणी शीतल|



क्योंकि...



इस सन्नाटे में भी एक आहट सी आती है,

ये ख़ामोशी भी हमसे कुछ कह गुज़र जाती है|



ह्रदय को अपने तू खोल मानव, सुन स्वर-तरंग तू उस अदृश्श्य की|

अनकही उन बातों को सुन...अनकही उन ख्यालों को सुन|



ख़ामोशी की उस गहराई को नाप तू,

छिपा है जिसमे सार जीवन का|

बीते हारों को भुलाकर तू,

भर नयी उड़ान जीत की|



भागती दौड़ती इस जीवन से,

निकाल तू दो पल शान्ति की|

कर दो बातें तू खुदसे ही, क्योंकि...


इस सन्नाटे में भी एक आहट सी आती है,

ये ख़ामोशी भी हमसे कुछ कह गुज़र जाती है|

इस सन्नाटे में भी एक आहट सी आती है...
Sunday, April 8, 2018
Topic(s) of this poem: life,night
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Sometimes you just cant refrain from writing... and thats when it all comes out in a flow... and its best not to alter it at all. So that was my first and final draft... without any changes.
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success