रात को हमने अपना हमसफ़र बनाया है Poem by Vashita Moondra

रात को हमने अपना हमसफ़र बनाया है

रात को हमने अपना हमसफ़र बनाया है,

क्यूंकि नींद से नाता हमारा पुराना है|



न जाने कैसे कट जाते है वो पल तिमिर स्थिरता के,

और चली आती है मधुर ध्वनि उदय मुरली की|



न जाने रात के बाद सवेरा आता क्यों है,

क्यों बिछड़ जाता है हमसे हमारा हमसफ़र?


रात को हमने अपना हमसफ़र बनाया है,

क्योंकि नींद से हमारा नाता पुराना है|

Tuesday, April 17, 2018
Topic(s) of this poem: day,night
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success