अधुरे ख़्वाब... Poem by Sandhya Jane

अधुरे ख़्वाब...

मंझिलों को मेरे मुट्ठियों में,
ख़ुशियों को मेरे क़दमों में,
मुसकुराटों को मेरे होंठों में,
बाहों के उन एहसासों में।
और, फिर खो जाना चाहती हुँ
सुबह की उन अधुरे ख़्वाबों में।।


इस सुरज को अाने से,
उस चाँद को जाने से,
उन ख़्वाबों को टूटने से,
इन सबको रोकना चाहती हुँ मैं।
और, फिर खो जाना चाहती हुँ
सुबह की उन अधुरे ख़्वाबों में।।

-Sandhya

अधुरे ख़्वाब...
Thursday, July 24, 2014
Topic(s) of this poem: life,love,dream
COMMENTS OF THE POEM
READ THIS POEM IN OTHER LANGUAGES
Close
Error Success