जीते जीते न ली खबर मेरी Poem by Sadashivan Nair

जीते जीते न ली खबर मेरी

जीते जीते न ली खबर मेरी,
अब तू आयी मेरी कबर मे,
और फूल चढ़ा के चल पडी़;
पता तो तब चला,
तेरे आने की खबर से
मेरे उजडे हुए कबर मे,
बादल बिजली गिरा के गरज पडे;
न तू ने समझा न मैंने,
फिर भी साथ रहे,
मन से अनेक होने के बाबजूद;
पता भी न चला,
कैसे वक्त गुजर गया;
कफन मे भी तू कोसती रही,
और मै चला गया;

© Sadashivan Nair

Wednesday, March 27, 2019
Topic(s) of this poem: hindi,poetry,shab-e-qadar
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