पलकें झुकतीं हैं मिलतीं हैं तुझसे ही Poem by Yashvardhan Goel

पलकें झुकतीं हैं मिलतीं हैं तुझसे ही

नजरें करती हैं साज़िश सताने की मुझको,
ये ना जानें मेरा हाल कैसा रहता है!

पलकें झुकतीं हैं मिलतीं हैं तुझसे ही यूँ तो,
उठके तुझको ना पाके तमाशा कैसा रहता है!

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Yashvardhan Goel

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