पागल पूछे निरुपया से Poem by Nitesh K. mahlawat

पागल पूछे निरुपया से

निपट उदासी मन पर छाई
बैरन बन गई है तन्हाई
चकित दंग और है हैरान!
पागल पूछे निरुपया से
कहाँ खो गई वो मुस्कान!
प्रीत गीत की कहाँ खो गई
प्रेम अगन क्या तृप्त हो गई
सूने सारे स्वपन हो गये
मन मस्तिष्क के ताल बह गये!
बाग़ हो गये सब वीरान
माली पूछे मेघमती से
कहाँ खो गयी वो मुस्कान!
ज्योति से ज्वाला इर हो गई
नित्य निरंतर शांत सो गई!
खाली मवाली शेष रह गया
मन का मीत किस धुन में बह गया!
पलकों के परदे झुक कर ढूंढें
अनजाने कदमों के निशान!
पागल पूछे निरुपया से
कहाँ खो गई वो मुस्कान!
नग्न निशा अंधियारी छाई
शिशिर धुप गई पर नही परछाई!
चातक ढूंढे एक चकोरी
बिना सुनाये लोरी!
सारा योवन समेट के बोली
कहाँ छुप गया सुन्दर चाँद
पागल पूछे निरुपया से
कहाँ खो गई वो मुस्कान!
मृत देह पर ना कभी रौनक़ छाई
शोक मगन परिवार हो गया
नीरस ये संसार हो गया!
शव भी पूछे भटकते मन से
कैसे छूटे मेरे प्राण
पागल पूछे निरुपया से
कहाँ खो गई वो मुस्कान!

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