Nitesh K. mahlawat

Nitesh K. mahlawat Poems

मैं क्यों डर जाता हूँ
मैं क्यों घबरा जाता हूँ,
पीली सी रौशनी में काली सी परछाई देख मैं,
क्यों घबरा जाता हूँ,
...

In the path of life,
Everything is to fight.
Go ahead like soldiers,
Always do the right.
...

तमाम उलझनो का नाम है जिंदगी
हर रोज़ मुश्किलों का पैगाम है जिंदगी
हर किसी को नहीं हमराज़ है जिंदगी
किसी से खुश किसी से नाराज़ है जिंदगी
...

तमाम उलझनो का नाम है जिंदगी
हर रोज़ मुश्किलों का पैगाम है जिंदगी
हर किसी को नहीं हमराज़ है जिंदगी
किसी से खुश किसी से नाराज़ है जिंदगी
...

Nothing comes out of nothing
work harder of everything
what will be, will be
No use to waste your thinking
...

एक परिंदे के दर्द का फ़साना था,
कटा था पर(पंख) फिरभी उड़ कर जाना था!
उड़ता चला जा रहा था बेफिक्री में वो,
न कोई मंज़िल थी बेशक काफिरों सा अफ़साना था!
...

They met,
Silence crawled
She asked his eyes
are you trembling to see me?
...

हीरा बनकर भी तू, अंगूठी में जड़ा रह गया,
मुसाफिर आगे निकल गए तू खड़ा रह गया|
कभी सूरज सा जला कभी सविता सा बहा
कभी बादल सा जिया कभी कविता सा कहा
...

आपकी निगाह ऐ करम में
क्या क्या अंजाम हो लिए,
तोड़ कर खुदा का घर
कुछ काशी चले गए
...

कुछ करने की तमन्ना है,
कुछ बनने की तमन्ना है!
कुछ खोने की तमन्ना में,
कुछ पाने की तमन्ना है!
...

निपट उदासी मन पर छाई
बैरन बन गई है तन्हाई
चकित दंग और है हैरान!
पागल पूछे निरुपया से
...

We all want to do something
But not sure about goal
Thant's why we can do nothing
Perhaps we don't know our soul
...

The Best Poem Of Nitesh K. mahlawat

मैं क्यों डर जाता हूँ

मैं क्यों डर जाता हूँ
मैं क्यों घबरा जाता हूँ,
पीली सी रौशनी में काली सी परछाई देख मैं,
क्यों घबरा जाता हूँ,
मैं क्यों डर जाता हूँ |
खुद की खुदी से मैं यूं कुछ
जुड़ा भी नहीं,
पर खुदा की बंदगी में मैं फिर भी,
हर रोज कुछ यूँ झुक जाता हूँ;
पर अब झुक ही गया हूँ,
फिर भी मैं क्यों डर जाता हूँ,
मैं क्यों घबरा जाता हूँ |
क्यों मैं इतना बेचैन हूँ,
क्यों मैं इतना अकेला हूँ,
पर मैं जुड़ना भी नहीं चाहता;
जज्बात इरादों को कमजोर कर देते हैं,
मैं तो जज्बाती भी नहीं,
फिर भी मैं क्यों डर जाता हूँ,
मैं क्यों घबरा जाता हूँ |
सुना है तुम गैरों की परवाह भी करते हो,
शायद मैं तो अपनों की भी नहीं करता;
फिर भी मैं बेफिक्रा क्यों नहीं;
बस इन्ही सवालों से,
मैं क्यों डर जाता हूँ........

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