खट्टर कका Poem by shiv chandra jha

shiv chandra jha

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खट्टर कका

खट्टर कका दलान पर बैसल

POET'S NOTES ABOUT THE POEM
खट्टर कका दलान पर बैसल भाङ्घ घाटैत छलाह । हमरा अबैत देखि बजलाह— हाँ..हाँ…..ओम्ह र मरचाइ रोपल छैक, घूमि कऽ आबह ।
हम कहलिऐन्ह.— खट्टर कका, आइ जयवारी भोज छैक, सैह सूचित करय आयल छी ।
खट्टर कका पुलकित होइत बजलाह…बाह बाह! तखन सोम�े चलि आबह । दु एकटा धङ्घेबे करतैक त की हैतैक? …..हँ, भोजमे हैतैक की सभ?
हम—दही चूडा चीनी ।
... खट्टर कका— बस, बस, बस । सृष्टिगमें सभ सँ उत्कृ ष्टू पदार्थ यैह थीक । गोरसमे सभ सँ माँगलिक वस्तुू— दही, अन्न मे सभक चूडामणि—चूडा, मधुरमे सभक मूल—चीनी । एहि तीनूक सँयोग बूम�ह तै त्रिवेणी—सँगम थीक । हमरा त त्रिलोकक आनन्दभ एहिमे बूमि� पडैत अछि । भूडा…भूलोक, दही…भुवर्लोक, आ चीनी…स्वकर्लोक ।
हम देखल जे खट्टर कका एखन सरँगमे छथि । सभटा अद्भुते बजताह । अतएव काज अछैतो गप्पज सुनबाक लोभें बैसि गेलहुँ ।
खट्टर कका बजलाह— हम त बुम�ै छी जे एही भोजन सँ साँख्यक दर्शनक उत्प त्ति भेल अछि ।
हम चकित होइत पुछलिऐन्हु—ऐं! दही चूडा चीनी सँ साँख्यच दर्शन! से कोना?
खट्टर कका बजलाह…एखन कोनो हडबडी त ने छौह? तखन बैसि जाह । हमर विश्वाैस अछि कपिल मुनि दही चूडा चीनीक अनुभव पर तीनू गुणक वर्णन कऽ गेल छथि । दही…सत्वकगुण, चूडा…तमोगुण, चीनी…रजोगुण ।
हम कहलिऐन्हद—खट्टर कका, अहाँक त सभटा कथा अद्भुते होइत अछि । ई हम कतह नहि सुनने छलहुँ ।
खट्टर कका बजलाह— हमर कोन बात एहन होइ अछि ने तों आनठाम सुनि सकबह?
हम— खट्टर कका, त्रिगुणक अर्थ दही चूडा चीनी, से कोना बहार कैलियैक?
खट्टर कका—देखह, असल त्वि खहिएमे शहैत छैक, तैं एकर नाम सत्व । चीनी गर्दा होइछ, तैं रज । चूडा रुक्षतम होइछ, तैं तम । देखै छह नहि, अपना देशमे एखन धरि "तमहा" चूडा शब्द प्रचलित अछि ।
हम—आश्चतर्य! एहि दिस हपर ध्या न नहि गेल छल ।
खट्टर कका व्या ख्याल करैत बजलाह—देखह, तमक अर्थ छैक अन्ध।कार । तैं छुच्छ चूडा पात पर रहने आँखिक आगाँ अन्हाेर भऽ जाइ छैक । जखन उज्ज र दही ओहि पर पडि जाइ छैक तखन प्रकाशक उदय होइ छैक । तैं सत्व गुण कें प्रकाशक
कहल गेलैक अछि । "सत्वंा लघु प्रकाशकमिष्ट म्" । तैं दही लघुपाकी तथा सभ कैं इष्टओ (प्रियगर) होइत अछि । चूडा कोष्ठघ कैं बान्हि् दैत छैक । तैं तम कैं अवरोधक कहल गेल छैक । और बिना रजोगुणे त क्रियाक प्रवर्तन हो नहि । तैं चीनीक योग बेत्रेक खाली चूडा दही नहि घोंटा सकैत छैक । आब बुम�लहक?
हम कहलिऐन्ह — धन्य छी खट्टर कका । अहाँ जे ने सिद्ध कऽ दी!
खट्टर कका बजलाह—देखह, साँख्यषक मत सँ प्रथम विकार हाइ छैक महत् वा बुद्धि । दहि चूडा चीनी खैला उत्तर पेटमें फूलि कय पसरैत छैक । यैह महत् अवस्थाक थिकैक । एहि अवस्थाडमे गप्पख खूब फुरैत छैक । तैं महत् कहू वा बुद्धि…बात एक्केि थिकैक । परन्तुि एकरा हेतु सत्व गुणक आधिक्या होमक चाही अर्थात दही बेशी होमक चाही ।
हम—अहा! साँख्यन दर्शनक एहन तत्व् दोसर के कहि सकैत अछि ।
खट्टर कका बजलाह—यदि एहिना निमन्त्र ण दैत रहह त क्रमशः सभ दर्शनक तत्व वुम�ा देवौह । त्रिगुणत्मिवका प्रकृति द्रष्टाी पुरुष कैं रिम�बैत छथि । एकर अर्थ जे ई त्रिगुणत्मवक भोजन भोक्ता पुरुष कैं नचवैत तथि । तैं—नृत्यकन्तिि भोजनैर्विप्राः ।
हम कहलिऐन्हत—परन्तु् खट्टर कका! पछिमाहा सभ त दही चूडा चीनी पर हँसैत छथि ।
खट्टर कका अङपोछा सँ भाँग छनैत बजलाह—हौ, सातु लिट्टी खैनिहार दधि—चिपटान्न क सौरभ की बुम�ताह! पिह्चजमक जेहन माटि बज्ज र, तेहने अन्नप बजरा, तेहने लोको बज्र सन । अपना देहक भूमि सरस, भोजन सरस, लोको सरस । चूडा पृथ्वी तत्वे…दही जल तत्व ….चीनी अग्निज तत्वन । तैं कफ पित्त वायु—तीनू दोष कैं शमन करबाक सामर्थ्य एहिमे छैक । देखह, अनादि काल सँ दही चूडा चीनीक सेवन करैत—करैत हमरा लोकनिक शोणित ठण्ढाप भऽ गेल अछि । तैं मैथिल जाति कैं आइ धरि कहियो युद्ध करैत देखलहक अछि?
हम— खट्टर कका, कहाँ सँ कहाँ शह चला देलहुँ । बीच—बीचमें तेहन मार्मिक व्यँ ग्यथ कऽ दैत छिऐक जे………..
खट्टर कका—व्यँ ग्यछ नहि, यथार्थे कहैत छिऔह । देखह, भोजने सँ प्रकृति वनैत छैक । चाली माटि खा कऽ माटि भेल रहैत अछि । साँप बसात पीवि कऽ फनकैत अछि । साहेब सभ डवल रोटी खा कऽ फूलल रहैत अछि । मुर्गा खैनिहार मुर्गा जकाँ लडैत अछि । और हम सभ साग—भाँटा खा कऽ साग—भाँटा भेल छी । हमरा लाकनि भक्त (भात) क प्रेमी थिकहुँ, तैं एक दोसरा सँ विभक्त रहैत छी । ताहु पर की त द्विदल (दालि) क योग भेले ताकय! तखन एक दल भऽ कऽ कोना रहि सकैत छी?
हम—अहा! की अलँकारक छटा!
खट्टर कका—केवल अलँकारे नहि, विज्ञानो छैक । कोनो जातिक स्विभाव बुम�बाक हो त देखी जे ओकर सभ सँ प्रिय भोजन की थिकैक? देखह, बँगाली ओ पच्छाँ हीक स्वटभावमे की अनतर छैक? ……जैह भेद रसगुल्ला ओ लड्डुमे छैक । रसगुल्ला‍ सरस ओ कोमल होइछ, लड्डू शुष्क. ओ कठोर । रसगुल्लाल पूर्वक प्रतीक थीक, लड्डू पश्चिामक । तैं हम कहैत छिऔह जे ककरो जातीय चरित्र बुम�वाक हो त ओकर प्रधान मधुर देखी ।
हम— खट्टर कका, अपना सभक प्रधान मधुर की थीक?
खट्टर कका—अपना सभक प्रधान मधुर थीक खाजा । देहातमे पिठाइ कहने ओकरे बोध होइछ । खाजा ने रसगुल्लाम जका
ँ स्निबग्धो होइछ, ने लड्डू जकाँ ठोस । तैं हमरा लोकनिमे ने बँगालीवला स्ने ह अछि, ने पँजाबीवला दृढता ।…….तखन खाजामें प्रत्युक परत फराक—फराक रहैत छैक, से अपनो सभमे रहितहि अछि ।
हम—वाह! ई त चमत्कािरक गप्प कहल! मौलिक!
खट्टर कका—ऐंठ वा बासि बात हम बजितहिं ने छी ।
हम—वास्तछवमे खट्टर कका! अहाँ ठीक कहै छी । गाम—गाममे गोलैसी, घर—घरमें पट्टीदारी म�गडा । कचहरीमे पागे पाग देखाइत अछि । से किऐक?
खट्टर कका—एकर कारण जे हमरा लोकनि आमिल मरचाइ बेसी खाइत छी । तीख चोख भेले ताकय । तीतोमे कम रुचि नहि । नीम—भाँटा, करैल, पटुआक म�ोर…..। ह्‍ौ, जैह गुण कारणमे हतैक ुैह ने कार्यमे प्रकट हैतैक! कटुता, अम्ल�ता ओ तिक्ताता हमरा लोकनिक आग बनि गेल अछि । स्वाकइत हम सभ अपनामे एतेक कटाउम� करैत छी!
हम—परन्तुै बँगाली सभमे एतेक प्रेम किऐक?
खट्टर कका भाँगमे एक आँजुर चीनी मिलबैत बजलाह—ओ सभ प्रत्येाक वस्तु मे मधुरक योग दैत छथि । दालिओ मीठ, तरकारिओ मीठ, माछो मीठ, चटनिओ मीठ! तखन कोना ने माधुर्य रहतैन्ही? अपनो जातिमे एहिना मीठक व्युवहार होमऽ लागय तखन ने! तैं हम कहैत छिऔह जे अपना जातिमे जौं सँगठन करबाक हो त मधुरक बेसी प्रचार करह । केवल सभा कैने की हैतौह? —"भोज ने भात ने, हरहर गीत! "गाम सँ दुगोला दूर करबाक हो त "दही चूडा चीनी लवण कदली लड्डू बरफी"क भोज करह ।
ई कहि खट्टर कका भाङ्गक लोटा उठौलन्हि और दू—चारि बुँद शिवजीक नाम पर छीटि घट्टघट्ट कय सभटा पीबि गेलाह
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