दरम्यान हमारे, फासलों के कुछ और भी बाकी रहने दो
एक बार फिर कभी, यूँही अचानक मिलने की आरजू तो बाकी रहने दो
कल मिले हम अगर कहीं
तो कुछ हो कहने को तुम्हारे पास और कुछ सुनने को हमारे पास
गिलों शिकवों की हो अगर बारिश, तो भीग सकें हम साथ साथ
हो कुछ जो अधूरा सा अहसास, मिलने पर ही तुमसे पूरा सा लगे
दरम्यान हमारे, फासलों के कुछ और भी बाकी रहने दो
अजनबी से ना हो जाएँ, और मुंह फेर कर निकल जाएँ
कुछ लम्हों की ही सही, मुलाकातों से तो ना कतराएं
दरम्यान हमारे, फासलों के कुछ और भी बाकी रहने दो
बात बिगाड़ना तो तुम्हारी आदत थी, लेकिन इस बात को हम ना दोहराएँ
बातों ही बातों में एक बार फिर रिश्तों को जगमगाना सीख जाएँ
हंसी और नमी के जोड़ को कागज़ पर उतारा
तेरे हर एक लफ्ज़ को इबादत बनाकर संभाला
जिंदगी बहुत छोटी है, इसे उदासी के साये से बचा रहने दो
दरम्यान हमारे, फासलों के कुछ और भी बाकी रहने दो
इतनी गहरी अनुभूतियाँ करीबी रिश्तों को निभाने की ज़रूरत, समझ व परस्पर लिहाज़ पर बल देती हुयी महसूस होती हैं. बहुत सुन्दर. कल मिले हम अगर कहीं / अजनबी से ना हो जाएँ, और मुंह फेर कर निकल जाएँ दरम्यान हमारे, फासलों के कुछ और भी बाकी रहने दो
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