जन्म 19.6.32- निर्वासित 24.9.42
अवांछनीय रहे होंगे तुम, अछूत
मगर नहीं थे तुम। भुला दिए गए
या किसी खास समय के साथ गुजरे नहीं हो तुम।
आकलन के अनुसार, तुम्हारी मृत्यु हो गई। इस प्रयोजनार्थ
सभी चीज़ों का पर्याप्त उपयोग हुआ।
पर्याप्त मात्रा में जायक्लॉन और चमड़ा, एकस्व
आतंक, रोज़ाना की ढेर सारी चींखें।
(सच है कि
मैंने अपने ही लिए
बनाया है शोक-गीत)
सितम्बर में लताएं फल-फूल रही हैं। दीवार
से गुलाब की पंखुड़ियां झड़ रही हैं। निर्दोष
आग का धुंआ मेरी आंखों पर छा रहा है।
यह बहुत ज्यादा है। हद से ज्यादा।
- जेफरी हिल
(अनुवाद- पीयूष कांति 'शून्य')
(This is a Hindi translation of Geoffrey Hill's poem 'September Song' Originally written in English. The poem has been translated in Hindi by Piyush Kanti 'Shunya'.)
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