एक बनो नेक बनो Poem by Rahul Vyas

एक बनो नेक बनो

Rating: 5.0

'गीदड़ धमकी से जो डर जाए,
वो परशुराम संतान नही,
हम श्रेष्ठ पुरुष हे दुनिया के ये शायद तुम्हे पहचान नही,
कान खोलकर सुनले सरकार,
चेहरे का खोल बदल देंगे,
इतिहास की क्या हस्ती है पूरा भूगोल बदल देंगे,
ब्राह्मण हुँ ब्राह्मण हित चाहता हुँ,
एक बनो नेक बनो,
जुड़ गए तो सिंह भी घबराएगा,
टूट गए तो कायर गीदड़ भी सताएगा'

Monday, August 25, 2014
Topic(s) of this poem: poem
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Rahul Vyas

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Dhar (MP)
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