'व्यर्थ तेरी इबादत; व्यर्थ तेरी भक्ती,
बरबाद हो रहीं हैं; तेरी सारी शक्ती.
शिक्षा से हीं होगा तेरा कायाकल्प,
शिक्षा से हीं होगी; स्त्री तेरी मुक्ती'.
शिक्षा की अतल गहरायी में; गोता लगा रहीं हुँ,
मुक्ती का मैं अपने; पता लगा रहीं हुँ.
मैं नारी; दबायी कुचली,
तल नीचा; मैं तल से नीचली.
मेरी चीता में; राख जली और,
झुठी मेरी; अर्थी निकली.
भस्मसात डर मेरा; दुनियांवालों बता रहीं हुँ,
मुक्ती का मैं अपने; पता लगा रहीं हुँ.
आज मिला मैं; अवसर जी लुं
वर्तमान मैं; सारा पी लुं.
भुत-भविष को; आग लगाकर,
आसमान मैं; सारा सी लुं.
आज; अकल और; कल हैं नकल; ये मैं जता रहीं हुँ.
मुक्ती का मैं अपने; पता लगा रहीं हुँ.
तन तरकारी; मन के भिखारी,
भेद नर-नारी; जिवन बेजां.
बोल उठेंगे; ईस धरती पर,
इंसा नाम; हिंसा का दुजा.
जो क्षर ना हो; वो अक्षर; उर्जा मैं; जगा रहीं हुँ.
मुक्ती का मैं अपने; पता लगा रहीं हुँ.
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