आना जाना ऐसा समा Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

आना जाना ऐसा समा

आना जाना ऐसा समा, मिलना बिछड़ना ऐसा समा
बाग में जब गुल खिला, खिल उठा मन माली का
शाख से जब वो गिरा, मन मेरा रो पडा

अच्छाई जल रही है,   बुराई जल रही है
किस चीज से बुझाऊं, हर चीज जल रही है
मन मेरा है जल जला, क्या पता क्या है भला
आँख से जब वो गिरा, मन मेरा रो पडा

देखता हूँ जब कभी, तु हैं मेरे सामने
सोचता हूँ तु भी हैं, शामिल मेर नाम में
तु हिस्सा हैं मेरा, तुझ से रिश्ता है मेरा
राख में जब तु मिला, मन मेरा रो पडा

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Monday, December 29, 2014
Topic(s) of this poem: life
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