हमारा घर हमारा भारत
देश नहीं ये है हमारा घर
जानता है ये धरती और अम्बर
यहाँ की मिटटी यहाँ का मौसम
सब अपना सा लगता है ।
सुन के वीरो की बलिदानी
मन मे एक शक्ति सा
जगता है ।
संस्कार यहाँ की दौलत है ।
संस्कृति यहाँ का गहना
भव्य सौंदर्य की शोभा है ।
माँ गंगा की धरा का बहना
शांति का पैगाम दिया और
ज्ञान की पहचान करायी
यहाँ तो सब अपने है ।
चाहे हो हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई ।
कितने भी अलग हो हम
प्रीत का धागा बंधा है मन मे
कोई बाँट न पायेगा हम सब को
एकता की शक्ति फैली है ।
जन जन मे
आदर्श हमारा जीवन है ।
अहिंसा हमारी शक्ति
ईमानदारी जमा पूंजी है ।
इंसानियत की यहाँ होती है भक्ति
मिट गए हमें मिटाने वाले
हार गए हमें सताने वाले
कुछ अपने लोगो ने
फैलया है नफरत का ज़हर ।
आओ हम सब मिल
जाए इस कदर
कोई सम्प्रदाियक शक्ति ना
मिला पाये हमसे नज़र ।
ना ही कोई दंगा हो
ना ही जले कोई और शहर
देश नहीं है ये हमारा घर
जानता है ये धरती अम्बर ।
मृतुन्जय कुमार
9555864331
छात्र BA.LLB 1st year
मुझे भी कवि बनना है
मार्ग दर्शन के लिए जरूर कॉल
कीजिए
कवि सम्मलेन मे जरूर बुलाये आपका सदा आभारी रहूँगा। प्रणाम
Posted by mirtunjay singh at 12: 39
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