परी परी इक हंसिनी
खोई खोई जल भँवर में
अंबर को निहारती विहारती
वो मन की राणी लहरें बिखेरे
टकराती लहरों को पंखों में समाए
वो मन की राणी
क्या कभी कोई लहर
उसने हृदय से लगाई
क्या कभी कोई अगन
उसने मन में जगाई
वो मन की राणी
मन का मोती जल भँवर में
उछाला क्या कोई प्रार्थी
या फिर उसने मन भावन
सजाई कोई आरती
(डॉ. रविपाल भारशंकर)
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