शब्दों से अब बात न बनती Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

शब्दों से अब बात न बनती

शब्दो से अब बात न बनती, दिल से दिल को कहने दो
प्रीत की डोरी बीन धागों की, इन सांसो से जुडने दो

दूर गगन में आंस का पंछी, पंख पसारे उड़ने दो
इन अँखियो से बहते मोती, अँखियो में ही रहने दो

आज पवन में खुशबू महकी, कण कण में बस जाने दो
एक होकर धरती गगन का, आज मिलन हो जाने दो

तेरा मेरा प्यार पुराना, इस जीवन में रहने दो
आएंगे हम प्रेम बनकर, हर दिल में बस जाने को

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Monday, December 29, 2014
Topic(s) of this poem: love
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