ओ घघरी, मनघट की तु प्यासी, पनघट चल री सखी
झर झर बहता झरना कितना, प्यारा लगे तुझे ओ घघरी
दूर से मिलने तुझसे आए, यारा तेरा तुझे ओ घघरी
सोच रहीं हूँ मन का मेरे, मित मिले इन राहों पर
देसी हो या हो परदेसी, ना हो दिल का सौदागर
नेक हो बंदा जैसे चंदा, क्या सोच रहीं हैं ओ घघरी
(डॉ. रविपाल भारशंकर)
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इस सुन्दर गीत को यहाँ शेयर करने के लिये धन्यवाद, डॉ. रविपाल जी. वैसे इस गीत को आप विस्तार देते तो और अच्छा रहता. किंतु अपने इस रूप में भी इसका सौंदर्य प्रगट होता है. निम्न पंक्तियाँ उल्लेखनीय हैं: सोच रहीं हूँ मन का मेरे, मीत मिले इन राहों पर देसी हो या हो परदेसी, ना हो दिल का सौदागर नेक हो बंदा जैसे चंदा, क्या सोच रहीं है ओ घघरी