गणतंत्र नहीं गुणतंत्र चाहिये Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

गणतंत्र नहीं गुणतंत्र चाहिये

गणतंत्र नहीं गुणतंत्र चाहिए
आदमी स्वतंत्र चाहिए
जीने के लिए मरने के लिए
आप अपने तरने के लिए
खाने के लिए पीने के लिए
नींद भर सोने के लिए
हंसने के लिए रोने के लिए
यूँ ही यहाँ खोने के लिए
गणतंत्र नहीं गुणतंत्र चाहिए
आदमी स्वतंत्र चाहिए

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Monday, December 29, 2014
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