यहां वहां, इधर उधर, डगर डगर
जमीं खा गई या, आसमां गया निगल आजकल
मेरे इस गांव में कम नहीं गरीबी
मेरे इस गांव में कम नहीं अमीरी
मेरे इस गांव में पर नहीं करीबी
मेरे इस गांव में प्रीत भर नहीं
आजकल
मेरे इस गांव में हाथपांव कम नहीं
मेरे इस गांव में धुपछाँव कम नहीं
मेरे इस गांव में पर नहीं फकिरी
मेरे इस गांव में नहीं मीत भर
आजकल
मेरे इस गांव में पूजापाठ कम नहीं
मेरे इस गांव में सांठगाठ कम नहीं
मेरे इस गांव में पर नहीं जमीरी
मेरे इस गांव में गीत भर नहीं
आजकल
(डॉ. रविपाल भारशंकर)
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