याग होती है जिंदगी Poem by Dr. Ravipal Bharshankar

याग होती है जिंदगी

कोई जलाता नहीं अपना घर
मगर आग होती है ये जिंदगी
बुझाता है कोई मगर अपना दर
अगर जाग होती है ये जिंदगी

कोई तुड़ाता नहीं अपना सर
मगर पाग होती है ये जिंदगी
जुड़ाता है कोई मगर अपना शर
अगर राग होती है ये जिंदगी

कोई त्यागता नहीं अपना कर
मगर त्याग होती है ये जिंदगी
स्वीकारता है कोई मगर अपना वर
अगर याग होती है ये जिंदगी

(डॉ. रविपाल भारशंकर)

Tuesday, December 30, 2014
Topic(s) of this poem: love
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