मैं क़रू ख़ुद से ढ़ेर सारी बाते Poem by Panki Lucky

मैं क़रू ख़ुद से ढ़ेर सारी बाते

मैं करु खुंद से ढ़ेर सारी बातें लेकिन पास मेरे एक भी लफ्ज़ नही होता...

वो भी क्या दौर था जब अनजाने में पुरी थी मेरी हर ' ईशतियाक '
लेकिन असर वैंसा दुंआओ से अब नही होता....
गैंरों की क्या औकात अपने ही देते हैं ज़खम
भरने उन्हें बेकरार कोई मरहम नही होता....

मैं करू खुंद से ढ़ेर सारी बातें लेंकिन पास
मेरे एक भी लफ्ज़ नही होता...

'आब-ऐ-चशम ' तो बहा दुं नेंनों से लेकिन कद्र करने वाला
' अजीज ' कोई श्ख़स नही होता.... मतलब के उसुलों का थाम दामन चल दी दिवानगी
बेंमतलब तो आज ईशक भी नही होता..
मेरे लिखें शब्द खुद-म-खुद मेरी फितरत बयां कर गयें
क्योंकि समझने इन्हें आज किसी के पास वक्त नही होता....

मैं करू खुंद से ढ़ेर सारी बातें लेंकिन पास मेरे एक भी लफ्ज़ नही होता...
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ईशतियाक = इच्छा
आब-ऐ-चशम= आंसु
अजीज = बहुत प्रिय

Sunday, January 18, 2015
Topic(s) of this poem: Art
POET'S NOTES ABOUT THE POEM
Whole day many words runing in my mind...so i add different words n write my first small poem.
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Bhiwani (Haryana)
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