A-217 जब तेरे बारे में सोचता हूँ Poem by Amrit Pal Singh Gogia

A-217 जब तेरे बारे में सोचता हूँ

A-217 जब तेरे बारे में सोचता हूँ 6.12.16—7.40 AM

जब तेरे बारे में सोचता हूँ तो अपने नसीब को कोसता हूँ

तेरे में ऐसा क्या है मेरे रकीब
मुझमें नहीं और वो तेरे नसीब

क्यों कर मुझसे बेबफ़ा हो गई
सरहद पार की व दफ़ा हो गई

उल्फ़त आलम का यूँ तंग न था
सुबह क्या हुई कोई संग न था

ऐसा क्या है जो मुझ में नहीं है
बहुत है मुझमें है तुझमें नहीं है

प्यार की लौ टिमटिमाने लगी
देखता रहा और वो जाने लगी

एक पल तो बाँहों में शरीक़ थी
दूजे ही पल वो तेरी तस्दीक़ थी

जब तेरे बारे में सोचता हूँ तो अपने नसीब को कोसता हूँ

Poet: Amrit Pal Singh Gogia "Pali"

A-217 जब तेरे बारे में सोचता हूँ
Tuesday, December 6, 2016
Topic(s) of this poem: competition ,complain,love and friendship,love and life
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