नारी स्वाधीन बन Poem by Anant Yadav anyanant

नारी स्वाधीन बन

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नारी स्वाधीन बन,
जब मन में धीर पन
जीवन की छाया बन,
समृद्धि की स्रोत बन
सबका है साथी बन
खुशियों की सावन बन,
मन को मोह बनावन बन
सबकुछ न्योछावर कर,
दूसरी खुशियों का सावन बन।

(नारी की महिमा विश्व अध्युति
जीवन जीना उसका विश्व अध्युति)

मोह भरी माया बन
साथ रहे जो,
प्रेमसक्ति साया बन,
साथ रहे जीवन की छाया बन,
तुलसी सी सुवासित।

माता का मान बन,
पिता की सम्मान बन,
घर की मर्यादा बन,
प्रेमपूर्ण वादा बन,
प्रेम के सानिध्य में खुशी का इरादा बन।

तेरा स्वाधीन पन, जब बने
छीड बन,

सब कुछ न्योछावर कर,
खुशी का इरादा कर,
रिश्तों का आदर कर
न मांग अपनी जागर कर।

मंधु सी सिंचित कविता कमाल बन,
अनंत की कलम का फिर से वो शार बन।

जरूरत पड़ लक्ष्मी विरानी बनी,
व सेज का साज बढाया,
अपने पे आई कहर तक ढाल दी
कहर तक ढाल दी,

मधु सी सिंचित कविता कमाल बन,
अनंत की कलम का वो फिर से सार बन ।

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