बाँट डालो, किसी अंग का तो स्वामी बन जाओगे!
सिर, हाथ, पैर, अंगुली, नाखून कुछ तो पा जाओगे।
देखा जिन्होंने दुःख, दुर्दिन; रखने को आन इसकी।
नाम तो रखे किताबों में, मिटा रहे हो शान इसकी।
दिखाने को अपना कद ऊँचा अपनी ही माता से
रौंद बेदर्दी से तुम, दबाये जा रहे अरमान इसकी।
भौंक कर के खंजर, इसका दिल कैसे धड़काओगे?
बाँट डालो, किसी अंग का तो स्वामी बन जाओगे!
कितने दुःख सहे हैं इसने, तुम भला क्या जानोगे?
स्वार्थ के चश्मे से इसकी, सूरत कैसे पहचानोगे?
औरों ने चुकाया मोल, तब मिली माता अनमोल,
इसकी आन को यूँ ही क्या तुम मिट्टी में सानोगे।
स्वार्थ की पूर्ति में खुद की क्या, माँ को काटोगे?
बाँट डालो, किसी अंग का तो स्वामी बन जाओगे!
माँ ने तो जन्म दिया है, अपने करोड़ों लाल को।
बड़े होंगे तो खड़े होंगे वो, उसकी देख भाल को।
जात, धर्म, भाषा, क्षेत्र में, बांट कर रहे टुकड़े तुम,
माँका कलेजा चीर के, गलाते अपनी दाल को।
बंट जाएगी तो भारत माँ फिर किसे कह पाओगे?
बाँट डालो, किसी अंग का तो स्वामी बन जाओगे!
(c)एस० डी० तिवारी
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