बेवफा निकला
जिसे महबूब समझा था वो बेवफा निकला।
जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ के सफा निकला।
मंजिल तो उसकी और ही पहले से तय थी
जुट गया उन कामों में जिनमें नफा निकला।
बोल के गया संवार देगा जिंदगी एक दिन
वादा का हर पलटा हुआ कोरा सफा निकला।
करके निगाहें मेरी ओर वो मीठी बोल गया
फिर निगाहें फेर बगल से कई दफा निकला।
मैंने तो अपना जान, दे दिया मत उसको
वो बात भी न करता जैसे खफा निकला।
मेरे संग बहुतों ने किया भरोसा उस पर
मगर मतलबी वह, करता जफ़ा निकला।
अपने रहने लगा महलों के अंदर जाकर
हमें गेट पर ही रोकता हर दफा निकला।
- एस० डी० तिवारी
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem
Badhiya kavita hai...maza aa gaya. Dhanyavaad.