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भूख शांत होती नहीं पैसे की क्यूँ
यह सवाल मेरे मन में उठता है
नोटों के करीब पर संतुष्ट परिस्थिति से दूर जा रहा हु क्यूँ
ये सवाल मेरे मन में उठता है
किसी अपने ने कहा, पैसे से ख़ुशी खरीद तो ये भी मैंने आजमाया
और किसी ने कहा की ये तोह कभी किसी के साथ न गया, तब मैंने इन दोनों की संधि को अपनाया
कमाया भी खूब और लुटाया भी खूब, पर यह भी ज्यादा दिनों के लिए रास न आया
घूम फिर कर उसी मुकाम पर वापस मैं आया
फिर सोचा टेंशन बहुत है इस दुनिया में थोडा नशा करते हैं
और टेंशन भगाने के इस बताये गए तरीके को भी मैंने आजमाया
उसी पैसे से फिर दुनिया के सारे नशे खरीद कर लाया
पर यह तो पैसे के नशे की तरह ही निकला, जितना किया उतना ही मुझे और उकसाया
पर इन सब में भी गलती मुझे मेरी ही नजर आई
इस दुनिया ने जो रास्ता दिखाया, मैंने उसपे ही हमेशा गाडी चलाई
आधी जिंदगी खो दी मैंने इतनी समझ आने के लिए
की अपना रास्ता खुद बनाओ अपनी गाडी चलाने के लिए
लेकिन जो आधी बाकी है इसमें ही अब पूरी जिंदगी जी लू
यही जवाब मुझे अब मिलता है
दूसरों के लिए करने में ही मिलती है संतुष्टि
यही जवाब मुझे अब मिलता है
भीड़ से निकल कर अलग रास्ता चुनो तभी तुम लक्ष्य पर पहुच पाओगे
वरना इसी ट्राफिक जाम में सारी जिंदगी फसे तुम रह जाओगे
खुद के मनन में उठे सारे सवालों का जवाब खुद से ही मुझे अब मिलता है
एक सोच, जिसे दिल, दिमाग, इंसानियत, हिम्मत और जज्बा मिलाकर बनाया है
उसी से अब मुझे हर जवाब मिलता है.
Written on 15th august 2012
By: Asheesh sharma
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