Cheto, He Jan Gan Cheto चेतो हे जन गण चेतो Poem by S.D. TIWARI

Cheto, He Jan Gan Cheto चेतो हे जन गण चेतो



चेतो हे जन गण चेतो
तुम्हारा कुछ कोई लेने आता
उससे तो तुम लड़ मरते हो
देश लूट कर कोई खाता
उसको अनदेखी करते हो
वतन की रक्षा तुम्हारे हाथ है
अपने देश को यूँ न बेचो
चेतो हे...
फटे हाल आगे वो आता
देखते ही धन कुबेर बन जाता
कोई धन दिखाकर तुमको
तुम्हारा अधिनायक बन जाता
किसी गलत प्रभाव में आकर
उनके आगे सिर क्यों टेको
चेतो हे...
जिन्हे तुम्हारी परवाह नहीं है
तुम्हारे हित कि चाह नहीं है
राज योग का भोग भोगते
तुम्हारे दर्द की थाह नहीं है
भले बुरे के अंतर को देखो
ऐसों को क्यों चुनकर भेजो
चेतो हे...
जन तो तुम हो तंत्र अलग क्यों
जीवन जीने का मंत्र अलग क्यों
प्रतिनिधि बनाते, विशिष्ट बन जाते
तुम्हे झोपड़ी, उन्हें महल क्यों
अपने मत के मोल को जानो
कीमती मत को व्यर्थ न फेको
चेतो हे...

- एस. डी. तिवारी

Thursday, March 13, 2014
Topic(s) of this poem: inspiration
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