Dharm Ka Vyapaar (Hindi) Poem by S.D. TIWARI

Dharm Ka Vyapaar (Hindi)

बाबा कई बना रखे, धर्म को भी व्यापार।
चलायं बना के संगठन, ठग्गी का बाजार।
ठग्गी का बाजार, खेलें आस्था से मन की।
मुंह में लेकर राम, टटोलें झोली जन की।
धरम की आड़ चले, विलासी अद्भुत ढाबा।
राजनीति की डोर, पकड़ उड़ पाते बाबा।

- एस० डी० तिवारी

Sunday, August 9, 2015
Topic(s) of this poem: hindi,society
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