अगर चाहो तो मिल जाओ
अगर चाहो बिछड़ जाओ
मिट मिट कर न जीने दो
घुट घुट कर न तड़पाओ
मेरे दिल की न पूछो
ये ना किसी के हालात समझता है
और न मुश्किल समझता है
हमारा हाल कैसा है
तुम्हारा दिल समझता है
मेरी चाहत ना मेरी है
मेरी दुनिया अँधेरी है
मेरी किस्मत में रोना है
शायद तुम्हें अब खोना है
हुई क्यों उस मौत से भी दूरी
जिसे काबिल समझता है
हमारा हाल कैसा है
न ये तुम्हारा दिल समझता है
तुम्हारा नाम ख़ुशी है
तुम्ही से ग़म हमारा है
मैं दूर अब जी नहीं सकता
तू ही अब सहारा है
अजब मन्ज़र है इस ग़म का
अजब आलम है 'आलम' का
जिसे तन्हाई कहता है
उसे महफ़िल समझता है
हमारा हाल कैसा है
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem