एक कोख के
अब नहीं रहते
एक घर में
बाँट लिए वे
अपने में कमरे
माँ को दलान
ठण्ड का डेरा
पूरी पर्वत माला
बर्फ ने घेरा
जीवित गिरि
किसने डाल दिया
श्वेत चादर
कैसे पचाए
पेट में बात रखे
पेट का खाना
पिल्ला बेचारा
छुपता पुआल में
ठण्ड की मार
गन्ने की खोई
धीरे धीरे जलती
ओस में गीली
ठिठुरी मारे
दीवार के सहारे
धूप में बैठा
जम जाता है
खेत में जमा आलू
पाला के मारे
अस्पष्ट दिखे
कोहरे में धरती
आँखों में माडा
धरा आकाश
कोहरे ने ओढ़ाया
चादर साथ
काली हथिनी
कोहरे में दिखती
गोरे रंग की
जाड़े के दिन
वृद्ध काटें बाहर
धूप सेकते
मैंने क्या खाया
दातों ने बता दिया
फँसी पालक
अँधेरी रात
फिर भी देख लेता
उल्लू मक्खी को
निगल जाता
देख लेने पर भी
मक्खी को उल्लू
बन जाती है
मखमली ओढ़ना
जाड़े की धूप
निकाल दिया
मम्मी ने संदूक से
स्वेटर मेरा
सुबह शाम
अलाव का आनंद
गावं की सर्दी
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