I entered your heart the day
you were strolling outside,
the air was embracing you
I stood there
Watching your trembling
naked body
I waited for you to recover
to come back to happiness,
But you had become so pallid
as if you were to collapse
Still I stood there to back you up
But at that moment I saw
your serving serf, paler than yourself,
entering inside you, merging with you
How intact was your manhood
at that moment I realized,
and cautiously I came out of you
Outside the scene was the same
from which I was to escape,
Other women were escaping too
from other such scenes.
किसी और हृदय में
सविता सिंह
मैं गई तो थी उस रोज़
तुम्हारे भीतर
तुम टहल रहे थे
और तुमसे लिपटती हुई थी हवा
मैं खड़ी देखती रही
तुम्हारी सिहरती निर्वस्त्रा देह
मैं प्रतीक्षा करती रही
तुम्हारे संभलने और लौटने की
एक और सुख की तरफ़
तुम पीले पड़ गए थे
और बस गिरने ही वाले थे
मैं तब भी खड़ी रही
थामने के लिए तुम्हें
लेकिन मैंने देखा
तभी आया तुम्हारा क्रीतदास
तुमसे भी अधिक पीला
और समा गया तुम में
किसी और हृदय में / सविता सिंह
सविता सिंह »
मैं गई तो थी उस रोज़
तुम्हारे भीतर
तुम टहल रहे थे
और तुमसे लिपटती हुई थी हवा
मैं खड़ी देखती रही
तुम्हारी सिहरती निर्वस्त्रा देह
मैं प्रतीक्षा करती रही
तुम्हारे संभलने और लौटने की
एक और सुख की तरफ़
तुम पीले पड़ गए थे
और बस गिरने ही वाले थे
मैं तब भी खड़ी रही
थामने के लिए तुम्हें
लेकिन मैंने देखा
तभी आया तुम्हारा क्रीतदास
तुमसे भी अधिक पीला
और समा गया तुम में
तुम्हारा पौरुष कितना संभला हुआ था
मैंने जाना
ख़ुद को फिर संभालती हुई
किसी तरह आई बाहर
यहाँ भी वैसा ही दृश्य था पसरा हुआ
जिससे निकल कर जा रही थीं
दूसरी स्त्रियाँ मेरी तरह ही
किसी और दृश्य में
तुम्हारा पौरुष कितना संभला हुआ था
मैंने जाना
ख़ुद को फिर संभालती हुई
किसी तरह आई बाहर
यहाँ भी वैसा ही दृश्य था पसरा हुआ
जिससे निकल कर जा रही थीं
दूसरी स्त्रियाँ मेरी तरह ही
किसी और दृश्य में
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem