हम तो भाई! अब रोज, एकाँत में बैठते हैं।
कलम कापी लेकर, अपनी माँ के हाथ जोड़ते हैं।।
माँ वाणी को दो-चार बस गीत सुना देते हैं।
मिलता जो प्रसाद, फेसबुक पर बाँट देते हैं।।
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem