लाडो क्यों चली गयी …
लाडो क्यों चली गयी, सरहद के पार
ढूंढती फिरे है माई, गली बाजार।
बिस्तर पर गुड्डा, अकेला ही सोता
रातों को माता रोती, रहती निहार।
लाडो का गुड्डा घर, सूखे नयन रोता
अम्मी बहाती रोज, असुअन की धार।
बिखरे पड़े हैं, गुड़िया रे केश तेरे
पास तू आ जा मेरे, दे दूँ संवार।
कहाँ छुपी तू लाडो, रो रो के मैया
हाथ में कंघा ले के, करती पुकार।
पहला निवाला, किसके मुंह में डालूँ
उतर नहीं पाता अकेले गले हेठार।
खा गए किताबें सारीं, झिंगुर पढ़ पढ़
कुर्ती रखी माँ ने, सन्दुक में संभाल।
उसको पता नहीं, क्या होती सरहद?
खेल खेल में उसने दी, कदम उतार।
कैसे पठाउं उसे, आने के कागज
कहाँ है डेरा उसका? कौन सरकार?
(C) एस० डी० तिवारी
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गुमशुदा बेटी का ग़म माँ से अधिक कौन जानता है. आपने इसी ग़म को भावुकतापूर्ण शब्दों में पिरोया है. धन्यवाद.