Man Chalisa 2 मन चालीसा 2 Poem by S.D. TIWARI

Man Chalisa 2 मन चालीसा 2

मन चालीसा 2

ईश्वर ने भेजा धरती पर
सबकुछ और सबको देकर

स्वयं पाने को ज्यादा धन
कई छीनते औरों का अंश

पूरी होती कोई भी चाह
श्रम और कष्ट की राह

जैसे जैसे बढ़ती इच्छा
करनी पड़ती लज्जित चर्या

काम में ढूंढें ख़ुशी जितनी
वह होता उतना ही धनी

जिसकी चाहत कुछ नहीं
सबसे बड़ा धनवान वही

ठीक न होती इनकी दौड़
लोभ काम घमंड और क्रोध

ये शेर हमको खा जाते
सब खोने पर फिर पछताते

इन शेरों को लगाकर लगाम
रहो आजाद मंगल सब काम

वीर वह जो मन को जीते
न भागे इच्छाओं के पीछे

इच्छा आविष्कार की जननी है
साथ ही अपराध की जननी है

मोक्ष तो मन पाना चाहे
मरने से फिर भी घबराये

अंतकाल में पाने को कुछ छण
सब देने को तत्पर होता मन

सब कुछ त्याग देने पर भी
यह इच्छा न होती पूरी

अनेकों लोग ऐसे देखे
जो मुझसे भी निर्धन लेखे

जब झाँका उनका अंदर
पाया स्वयं को ही निर्बल

उनके पास था मुझसे अधिक
ईश्वर को करने को समर्पित

जो मन को वश में रखे
इन्द्रियां होती वश में उनके

जिसका ध्यान लगे ईश्वर में
उसकी बुद्धि रहे नियंत्रण में

राग, द्वेष से हो वो मुक्त
धर्म अनुकूल, मन से शुद्ध

(c) एस० डी० तिवारी

Tuesday, April 22, 2014
Topic(s) of this poem: philosophy
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