एक गजल
हूँ अभी नन्ही कली पर, एक बड़ी अरमान हूँ
खिलखिलाते हर अधर, मैं आपकी मुस्कान हूँ।
घर चहकता है मुझी से, हँसता है आंगना
मातु की हूँ लाडली, मैं तात का अभिमान हूँ।
सुन्दर धरा की छवि बढाती, मुझी से है जगत
सुंदर, सुगन्धित; चमन में पुहुप सुरभि समान हूँ।
सौंदर्य की हूँ चित्रकारी, गुलिस्तां दिल में लिये
प्रेम का गहरा समुन्दर, मन मुग्धक जहान हूँ।
उस रचयिता की रचित, हूँ सृजन अद्भुत एक मैं
सृजन बढ़ाते बढ़ चलूँ, उसी का वरदान हूँ।
पुष्प सी हूँ कोमल बहुत, खड्ग की मैं धार हूँ
मैं एक पहेली बड़ी हूँ और अति आसान हूँ।
प्रेरणा बन हूँ खड़ी, सफल व्यक्तियों के भी बगल
बहुत सी उनकी मुश्किलों का, एक समाधान हूँ।
कारक रही मैं प्रजनन और जग संचलन की
हर युगों में उपस्थित, नव सृष्टि की विहान हूँ।
(C) एस ० डी० तिवारी
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