हे नीलश्यामघन हरिआनन! हम करते आपका सुभग ध्यान अभिराम।
आप कृपा करें देव! हो हृदय कमलासीन, श्रीमहालक्ष्मी दर्शन ललाम।।
पीत कँचन हरित प्रभायुत बदनकँज, कनक रजत सुशोभित हार।
सहस्त्रादित्यचँद्र सम आभा, दें हमें दर्शनाशीष उपहार।।
नील पीत वण^मिल होते हरितवर, जानते आपके अनन्य परिजन।
'नवीन'नित्य नव कृपा बरसाइये, मँगलमय हो सबके जीवन।।
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