शहीदों का कर्ज
खुशियां दी, जवानी दिया
अपनी जिंदगी की रवानी दिया.
वतन की रक्षा की खातिर
शहीदों ने क़ुरबानी दिया.
भगत, सुखदेव, राजगुरु व
मंगल के खून से सींची माटी.
चन्द्र शेखर, सुभाष चन्द्र बोस के
प्राणों के मोल मिली आजादी.
शहीदों कि सूची बड़ी लम्बी है
कितने नाम तो गुम भी गए हैं.
मगर प्राण और खून उनका
देश कि माटी में सन ही गए हैं.
उन्होंने क़ुरबानी दी थी कि
इस देश को आजादी मिले.
अपने बच्चों को गोदी लिए
भारत माँ मुस्कराती मिले.
और हमने कुछ पत्थर गाड़
बस अपना फर्ज निभा लिया.
उन पर कुछ के नाम खुदवा
शहीदों का कर्ज चुका दिया.
ऐसे भी लोग हैं जो उनके
बलिदानों की नहीं सोच रहे.
इस देश को लावारिस समझ
गिद्ध कि तरह नोच रहे.
जात, धर्म और पैसे में बाँट
बहुत से लोग कर रहे हैं ठाट.
भोले भले लोगों के देश के
साधनों का होता बन्दर बाट.
शहीदों के बलिदानों को भी
अब पैसों से तोला जाता है.
जो जितना अधिक बटोर ले
उसको ही बड़ा बोला जाता है.
सबको न्याय नहीं मिले तो
यह देश कैसे है स्वतंत्र भला.
भ्रष्ट, दबंगों के पंजों जकड़ा
कहाँ स्वस्थ है जनतंत्र भला.
भारत की यह तश्वीर देख
वे स्वर्ग में सर फोड़ते होंगे .
कोई कुबेर, कोई रंक आज भी
बलिदानों को कोसते होंगे.
जागो हे जन गण जागो
जाने न दो व्यर्थ बलिदान.
सम्मान चाहिए उन वीरों को
तुम्हारे लिए जो दिए थे प्राण.
भारत के हर वासी को मिल
शहीदों का कर्ज चुकाना होगा.
शहीदों के सपनों का भारत
मिलकर हमें बनाना होगा.
(C) एस० डी० तिवारी
This poem has not been translated into any other language yet.
I would like to translate this poem