हम तो है मुसाफिर
हम चल दिए
जीवन के सफ़र में
इस लंबी डगर में,
ढूँढने हम चले,
न सोना न चांदी, न हीरे न मोती,
बस थोडा प्यार...
ओ मेरे यार ढूँढने हम चले सिर्फ प्यार।
ये दुनियादारी, दुनियादारी।
कोई राजा कोई भिखारी,
दौलत का नशा हैं जो सर पे भर के चढ़ा हैं,
है बस ये दुहाई, दुहाई...
प्यार क्यों यहां खो रहा हैँ।
कोई अपना नहीं, कोई पराया नहीं,
मुझको तो बस ये है कहना
पूरा करे हर कोई अपना सपना,
होगी सच क्या ये कहानी,
है ये दिल की जुबानी, जुबानी...
हम तो है मुसाफिर
हम चल दिए
जीवन के सफ़र में
इस लंबी डगर में,
ढूँढने हम चले,
न सोना न चांदी, न हीरे न मोती,
बस थोडा प्यार...
ओ मेरे यार ढूँढने हम चले सिर्फ प्यार।
यूँ तो है ये दुनिया के रास्ते,
होगी मंजिल कहाँ राह तकते, अपने वास्ते,
भटक रहे हैं, पर पाएंगे मंजिल यहाँ,
होगा अपना जहान,
प्यार से भरा।
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I would like to translate this poem
writing is so beautiful compared to hanging vines, maybe grapes whereas I write sitting on a line. it looks like there is correlations of this writing to neighboring countries like Thailand, Pakistan. china, Bengal, Burma, etc