सावन बीता जा रहा, साजन नहीं है संग
विशाल मन के पृष्ठ पर, कौन भरेगा रंग
कौन भरेगा रंग, श्वेत, सादा सा लगता
बरसे रंग, भिगोये, नित्य बेकल मन करता
समझाऊँ किस भांति, दीवाना कर देता घन
तुम बिना ऐ साजन, जेठ सा लगता सावन
(C) S. D. Tiwari
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