उसने पत्थर को पूजा खुदा पा लिया
उसने पत्थर को पूजा खुदा पा लिया
हमने इन्सान को पूजा धोखा मिला
दिल के आईने में मुड़ के जो देखा
अक्स उसमे 'मिलाप' अपना रोता मिला
मुफलिसी ने उसे घेर रखा था ऐसे
हर मोड़ पर बोझ बेचारा ढ़ोता मिला
अजीब अजनबी थी वो विरान जगह
मुक्कदर मेरा मुझे जहाँ सोता मिला
कुछ ऐसा आलम था तेरे शहर का
हर गली मोड़ पर खड़ा धोखा मिला
मिलाप सिंह
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