Voice For Humanity Poem by Anjum Firdausi

Voice For Humanity

अब नहीं ख़ामोश़, रहना चाहिए।
ज़ुल्म को बस, ज़ुल्म कहना चाहिए।

ऊठ खड़ा हो रोक दे, हैवानियत।
आज कहती है मेरी, इंसानियत।
दो सज़ा वहशी को, और शैतान को।
ता के वो पहचान ले इंसान को।

बे वजह न खून, बहना चाहिए।
अब नहीं ख़ामोश़ , रहना चाहिए।


नफरतौं कि बीज बोना छोड़ दे।
हर क़दम ऊल्फत बढ़े ये ज़ोर दे।
है अगर तूझको मुहब्बत हिन्द से।
नौज़वाॅ बेदार हो जा निन्द से।

है हक़िक़त हक़ तो मिलना चाहिए।
अब नहीं ख़ाम़ोश़, रहना चाहिए।



रचना एवं लेख: -अंजुम फिरदौसी

ग्रा+पो: -अलीनगर, दरभंगा, बिहार

Thursday, January 5, 2017
Topic(s) of this poem: nazm
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Anjum Firdausi

Anjum Firdausi

Alinagar, Darbhanga
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