Ya Me Anpadh Hun Poem by milap singh bharmouri

Ya Me Anpadh Hun

या मै अनपढ़ हूँ
इसलिए मुझे बात समझ नही आती
या वो बडबोला है
बस वह बोलने का ही है आदि

वो कहता है यहाँ पर
हर आदमी समान है
मै कहता हूँ के वह
इस दुनिया से ही अनजान है

या वो अनजान है
या अनजानेपन का ढोंग करता है
या मानसिकता कलुषित है
या उसके मन में
कोई रोग पलता है

क्या वो अँधा है
रोज उसे अपने महल से निकलते
रास्ते में मेरी झुग्गी दिखाई नही देती
क्या वो बहरा है
उसे मेरे भूखे बच्चे की
रोने की आवाज सुनाई नही देती

वो अक्क्सर कहता है
कभी अखवारों में
कभी टी. वी. पे
कभी भूखों की भीड़ में
इन्ही बाजारों में
कि यहाँ पर सब इन्सान बराबर है



मिलाप सिंह भरमौरी

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